भारत में सॉफ्ट ड्रिंक्स का इतिहास जिसकी शुरुवात हुई थी “बँटा” से
भारत में सॉफ्ट ड्रिंक का इतिहास बँटा से शुरू होता है, जिसे गोली सोडा के नाम से भी जाना जाता है, इसके अलावा कालीमार्क नामक एक सोडा पेय था, जो 1916 में आया था। इससे पहले मुंबई में हेनरी रोजर्स नाम के एक व्यक्ति ने एक सोडा ड्रिंक भी लॉन्च किया था जिसका नाम रोजर्स रखा गया था। इसके बाद कुछ पारसी व्यापारियों ने सॉफ्ट ड्रिंक के धंधे में भी कदम रखा।
ये सॉफ्ट ड्रिंक या सोडा ड्रिंक भारत की स्वतंत्रता से पहले थे। सॉफ्ट ड्रिंक पर असली युद्ध भारत की आजादी के बाद शुरू हुआ।
पारले बनाम कोका कोला
एक भारतीय कंपनी जिसे हम पारले के नाम से जानते हैं, इसका भी भारत के सॉफ्ट ड्रिंक के इतिहास में हिस्सा है। पारले ने 1949 में सॉफ्ट ड्रिंक के कारोबार में कदम रखा। 1949 में पारले ने पारले कोला के नाम से अपना सॉफ्ट ड्रिंक बाजार में उतारा। तब तक कोका-कोला और पेप्सी भी भारत आ चुकी थी। कोका-कोला ने नई दिल्ली में अपना प्लांट खोला। एक तरफ पारले तो दूसरी तरफ दो अमेरिकी कंपनियां। इसके बाद 1952 में पारले ने अपना एक संतरे के स्वाद वाला सॉफ्ट ड्रिंक लॉन्च किया जो काफी सफल रहा, खासकर बच्चों के बीच और लोग कोका-कोला को भी पसंद कर रहे थे। हालांकि पेप्सी लोगो के बीच अपना कमाल नहीं दिखा पाया था। इस वजह से पेप्सी ने भारत छोड़ने का फैसला किया और अब भारत में केवल दो सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियां थी, पारले और कोका कोला। हालांकि, पारले और कोका-कोला का सीधा मुकाबला अभी बाकी था। दोनों सॉफ्ट ड्रिंक का स्वाद एक दूसरे से अलग था।
1971 में पारले ने अपना एक और ड्रिंक लॉन्च किया जो था लिम्का। लिम्का भी पारले की काफी सफल ड्रिंक रही। यह वही साल था जब भारत पाकिस्तान के साथ युद्ध में था। हालाँकि, युद्ध ने भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया था।
भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बुरे साल
1971-1977 भारत की राजनीति और भारत में सॉफ्ट ड्रिंक के भविष्य और इतिहास में बड़ी उथल-पुथल का दौर था। 1975 से 1977 तक भारत में आपातकाल लगाया गया था। यह आपातकाल करीब 21 महीने तक चला। 1977 में भारत में पहली बार गैर-कांग्रेसी सरकार, जनता पार्टी सत्ता में आई। मोरारजी देसाई भारत के प्रधान मंत्री बने। इसके साथ ही जॉर्ज फर्नांडिस केंद्रीय उद्योग मंत्री बने। जॉर्ज फर्नांडिस का विदेशी कंपनियों के प्रति रवैया काफी सख्त था।
जॉर्ज फर्नांडिस ने कोका-कोला का किया काम तमाम
केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस भारत में सॉफ्ट ड्रिंक के इतिहास में एक प्रमुख पात्र हैं। उन्होंने विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम लागू किया। जिसके तहत कोई भी विदेशी कंपनी भारत में 40% से ज्यादा शेयर नहीं रख सकती है और साथ ही यह नियम भी बनाया गया की विदेशी कम्पनियो को अपनी सॉफ्ट ड्रिंक का फार्मूला भी बताना होगा। वह इस बात से अच्छी तरह वाकिफ थे कि कोका-कोला इसके लिए कभी राजी नहीं होगी और फिर कोका-कोला ने भारत छोड़ दिया।
बात यहीं खत्म नहीं हुई। कोका-कोला के जाने के बाद जॉर्ज फर्नांडिस को भारत के लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ा। इस फैसले की वजह से कोका-कोला में काम करने वाले हजारों लोगों की नौकरी चली गई और वे कोका-कोला को भारत वापस लाने की मांग करने लगे।
भारत सरकार की सॉफ्ट ड्रिंक “डबल सेवन”
भारत सरकार ने कोका-कोला के बड़े बाजार को कवर करने के लिए अपनी सॉफ्ट ड्रिंक को लॉन्च करने का फैसला किया और जनता पार्टी ने तब डबल सेवन को मार्किट में उतारा। हालाँकि, यह असफल रहा। लेकिन कैंपा कोला, जो 70 के दशक से भारतीय बाजार में थी, अच्छा कर रही थी, और यह लगभग 20 साल तक चली।
भारतीय बाजार में थम्स अप की एंट्री
अब पारले की बारी थी, पारले ने कोला के बाजार को कवर करने के बारे में भी सोचा और फिर कुछ समय बाद पारले ने भारतीय बाजार में अपनी नई सॉफ्ट ड्रिंक थम्स अप को लॉन्च किया और पार्ले की यह सॉफ्ट ड्रिंक कामयाब रही।1987 तक पारले भारत में सॉफ्ट ड्रिंक में पहले नंबर की कंपनी बनी रही। मगर अब फिर से एक पुराना खिलाड़ी सॉफ्ट ड्रिंक के बाजार में प्रवेश करने वाला था, और भारत में सॉफ्ट ड्रिंक का भविष्य और इतिहास फिर से बदलने वाला था। भारत उस समय बेरोजगारी से जूझ रहा था, तब सरकार ने कई संसदीय चर्चाओं के बाद पेप्सी को भारत आने दिया। हालांकि कोका-कोला ने भी भारत लौटने की कोशिश की लेकिन वह असफल रही। स्थानीय सॉफ्ट ड्रिंक कंपनियों को भारत सरकार का निर्णय पसंद नहीं आया। इसलिए उन्होंने उनके फैसले का विरोध किया। लेकिन इसका ज्यादा असर नहीं हुआ और अब पेप्सी ने भारत में प्रवेश कर लिया था।
सॉफ्ट ड्रिंक की रेस में पुराने खिलाड़ी का प्रवेश!
1991 में जब पीवी नरसिम्हा राव भारत के प्रधान मंत्री बने और डॉ मनमोहन सिंह वित्त मंत्री बने, तो उन्होंने भारत को मंदी से बाहर निकालने के लिए विदेश नीतियों में बदलाव किया और विदेशी कंपनियों के स्वामित्व को 40% से बढ़ाकर 51% कर दिया। इस बार कोका-कोला ने खेल में वापसी की।
अब तक पेप्सी और थम्स अप के बीच जो मुकाबला था, अब इसमें कोका-कोला ने भी अपनी जगह बना ली थी। अब जब कोका-कोला फिर से भारतीय बाजार में आ गई थी तो यह सॉफ्ट ड्रिंक के बाजार में प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने वाला था। इस बार कोका – कोला नए प्लांट बनाने में अपना समय बर्बाद नहीं किया। कोका-कोला ने किसी तरह पारले के बॉटलर्स को अपनी तरफ करने की कोशिश की और उसमें कामयाब भी रही। अब जबकि पारले के पास सिर्फ चार बॉटलर्स और बाकी फ्रेंचाइजी थी, जो कोका-कोला की तरफ गई थीं। इसके बाद, 1993 में पारले ने अपने सॉफ्ट ड्रिंक व्यवसाय को बेचने का फैसला किया और इसे खरीदने वाली कंपनी कोका-कोला थी। आज के समय में पारले कंपनी दुनिया में सबसे ज्यादा बिकने वाला बिस्किट ब्रांड है। भारतीय सॉफ्ट ड्रिंक के बाजार में कोका-कोला एक राजा की तरह उभरा और इसने भारत में सॉफ्ट ड्रिंक के भविष्य और इतिहास को पूरी तरह से बदल दिया।
अब (1993) कोका-कोला भारत की सबसे बड़ी सॉफ्ट ड्रिंक कंपनी बन गई थी। इसके बाद भारत के सॉफ्ट ड्रिंक बाजार में केवल दो खिलाड़ी बचे थे और ये दोनों विदेशी थे, पेप्सी और कोका कोला। इसके बाद दोनों के बीच कांटे की टक्कर हुई। दोनों कंपनियों ने अपनी सॉफ्ट ड्रिंक को बढ़ावा देने के लिए मार्केटिंग में पानी की तरह पैसा खर्च किया। कोका-कोला ने थम्स अप, लिम्का को भी फिर से मार्किट में उतारा जो पारले की कामयाब सॉफ्ट ड्रिंकस थी।
कोका-कोला के फॉर्मूला की चोरी
अब, कोका-कोला और पेप्सी के बीच प्रतिस्पर्धा ऐसी थी कि 2006 में कोका-कोला के कुछ कर्मचारियों ने अधिक पैसा कमाने के लिए कोका-कोला के फॉर्मूले को पेप्सी को बेचने की कोशिश की। जब वे पैसे लेने आए तो उन्हें वहां एफबीआई ने गिरफ्तार कर लिया। हाँ, उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। क्योंकि जब उन्होंने पेप्सी को फॉर्मूला बेचने के लिए बुलाया तो पेप्सी ने कोका-कोला कंपनी को इसकी जानकारी दी। इसके बाद कंपनी ने एफबीआई से संपर्क किया। एफबीआई ने एक योजना बनाई और उन चोरों को गिरफ्तार कर लिया। पेप्सी ने एक अच्छे प्रतियोगी की मिसाल भी कायम की।
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